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कोटड़ी वाला धोरा

डॉ. फतेह सिंह भाटी

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 16624
आईएसबीएन :9789355184474

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मूलतः ये तीन अनोखी शादियों के क़िस्से हैं। बहुत कम लोगों ने ऐसी शादियाँ देखी होंगी। ये क़िस्से सिर्फ़ उन शादियों के क़िस्से नहीं हैं। यूँ कह सकते हैं कि इन क़िस्सों में वे शादियाँ भी हैं। इनमें मरुभूमि की लोक संस्कृति की झलक है। ‘कोटड़ी’ यानी गाँव में सामूहिक स्थल जहाँ पुरुष बैठते हैं। ‘धोरा’ यानी रेत का टीला। मेरे गाँव की कोटड़ी के निकट के इस धोरे पर गाँव के लगभग सभी किशोरयुवकअधेड़ और वृद्ध साँझ के समय बैठते थे और फिर जो क़िस्से निकलते थे उनमें लोक जीवन के सुख-दुःखदुश्वारियाँ-खुशियाँहास्य-व्यंग्य तो होते ही थे उनमें जीवन का गहरा दर्शन भी होता था। इस क़िस्सागोई में घर की गुवाड़ी कीगाँव की कोटड़ी कीखेतों की सौंधी महक है। उजड़ रेगिस्तान की रलकती रेत में पनपता जीवन है।

नीति का बखान है तो अनीति पर आक्षेप भी है। मैंने इन तीन क़िस्सों को मोहनिर्मोह और विरक्ति में विभक्त किया है। इसलिए पुस्तक के प्रारम्भ में आप क़िस्सों और गाँव के मोह में डूबते जायेंगे। जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे उस मोह से मुक्त होने लगेंगे और अन्त तक पहुँचते-पहुँचते गाँव सेजो मोह प्रारम्भ में पैदा हुआ था आप उससे विरक्त होने लगेंगे।

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